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वतन से मोहब्बत ईमान की निशानी है : हज़रत अली(अ.स.)

वेब ज़िन्दगी
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वतन  से मोहब्बत ईमान की निशानी है : हज़रत अली(अ.स.)

शीर्षक से ही अंदाजा हो गया होगा मै क्या लिखने जा रहा हूँ. यह कथन पैगम्बर ए इस्लाम (स. अ.व.अ.) के उत्तराधिकारी और दामाद हज़रत अली(अ.स.) का है. आज जबकि लोग देशभक्ति पर सवाल खड़ा किया जा रहा है.तो उससे पहले यह जाना ज़रूरी हो जाता है की अगर कोई मुसलमानों वाले नाम का आदमी कुछ ग़लत कर रहा है तो वह उसका अपना अमल है न की इस्लाम की शिक्षा का असर,और वह इस्लाम का हिस्सा नहीं है.क्यूंकि पैग़म्बर के उत्तराधिकारी की नज़र में वह सम्पूर्ण मोमिन नहीं है, जो अपने वतन की मोहब्बत न रखता हो. और यही शिक्षा पैग़म्बरे ईस्लाम की भी है.

सवाल यह उठता है की अगर कोई पैगम्बरे इस्लाम की शिक्षा को ना मानता हो तो क्या उसे मुसलमान कहना सही है?वह भी उस मसले में जिसे ईमान से जोड़ा गया हो.

पैग़म्बर(स.अ.व.अ.) की शिक्षा से एक बात साबित हो जाती है जो वतन की मोहब्बत में ज़रा सी भी कमी रखते हैं उनके मुसलमान होने पर हमेशा शक बना रहता है.मशहूर कथन है की आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता है,इस्लाम की शिक्षा के हिसाब से जिसने एक बेगुनाह का खून बहाया उसने गोया इंसानियत का खून बहाया जिसने इंसानियत का खून बहाया वह इंसान ही नहीं है,इस्लाम को मानने की बात तो बहुत दूर है. और इस बात की पुष्टि हो जाती है की आतंकवादी इस्लाम को मानने वाला नहीं हो सकता पैदा किसी के भी घर में हुआ हो, नाम उसने कुछ भी रख लिया हो. वह अधर्मी ही है.

वापस आते हैं वतन की मोहब्बत पर,मोहब्बत का तकाज़ा यह है कि आप महबूब  के नापाक दुश्मनों से मोहब्बत न करें,और सच्चे मुसलमान यही किया करते हैं.

इस्लाम कि शिक्षा के हिसाब से वतन से मोहब्बत ईमान कि निशानी है और जब वतन हिन्दुस्तान जैसा हो तो यह ज़िम्मेदारी और भी बढ़ जाती है क्यूंकि कर्बला में जब हज़रत अली(अ.स.) के बेटे,पैगम्बरे इस्लाम(स.अ.व.अ.) के नवासे,सय्यादुस शोहदा,फातहे कर्बला इमाम हुसैन (अ.स.) को यज़ीद की फ़ौज ने रोका तो इमाम हुसैन (अ.स.) ने कहा ‘मुझे हिंद चले जाने दो ,मुझे वहां से मोहब्बत की खुशबू आती है.(इस बात का ज़िक्र कुछ ब्लोगर्स पहले भी कर चुके हैं ),लेकिन तख़्त ओ ताज की हवास ने यज़ीद और उसकी फ़ौज को अँधा कर दिया था ,की बज़ाहिर मुसलमान होते हुए भी उन्होंने नबी के नवासे जिसकी मोहब्बत अल्लाह ने कुरान में वाजिब करार दी है को भूखा प्यासा शहीद कर दिया. न सिर्फ हुसैन (अ.स.) को बल्कि उनके भाइयों और साथियों,यहाँ तक की छ: महीने के हुसैन (अ.स.) के बेटे अली असगर(अ.स.) को भी गले में तीर मारकर शहीद कर दिया गया.

आज जब मै इन आतंकवादियों के घटिया कारनामो को देखता हूँ कि कहीं दो महीने की बच्ची तो कहीं १ साल का बच्चा या और बेगुनाह लोग धमाके में मारे गए,तो मुझे कर्बला याद आती है और यह आतंकवादी मुझे आज के यज़ीद नज़र आते हैं.हो न हो यह नस्ले यज़ीद ही हैं.इनसे इंसानियत शर्मिंदा है….

एक बात तो साबित है कि इस्लाम देशभक्ति ही सिखाता है,इस कथन की रौशनी में अगर कोई वतन से मोहब्बत नहीं रखता तो उसका ईमान मुक़म्मल नही है.और आज के दौर में हिन्दुस्तान का मुसलमान इस बात को समझता है और देश से मोहब्बत करता है…

हम सब हिन्दू-मुसलमान -सिख-ईसाईयों और जितने भी मज़हब हिंदुस्तान में हैं उन सब के माने वालों को एक साथ खड़े होकर भारत के हर दुश्मन का मुकाबला करना चाहिए….

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