- 6 Posts
- 194 Comments
कल मै बाज़ार से घर आ रहा था,रास्ते में अब्दुल भाई दिखाई दिए, बहुत ही परेशां से, मैंने पूछा,क्या हुआ अब्दुल भाई बहुत परेशान दिख रहे हैं आप?अब्दुल भाई कहने लगे,जब से दुकान बंद हुयी है है दोस्त रिश्तेदार सब मिलने से कतराने लगे हैं.कल तक जो लोग बेहद सगे थे आज उनकी निगाहें बदली हुयी हैं…अभी थोड़ी दिएर पहले ही शाकिर इधर से गुज़रा,मैंने उसे आवाज़ दी,कहाँ तो वह हमेशा अब्दुल भाई अब्दुल भाई कहकर लगा रहता था और आज मैंने जब आवाज़ दी तो वह अनजान बनकर चला गया.सिर्फ वही नहीं ज़्यादातर दोस्त रिश्तेदार बचने की कोशिश करते हैं.
अब्दुल भाई की किराने की दूकान थी,मृदभाषी होने की वजह से इनकी दूकान पर ग्राहकों की भीड़ लगी रहती थी.इलाके के ज़्यादातर लोग सामान इन ही की दूकान से खरीदते थे. अब्दुल भाई के घर में उनकी पत्नी शबीना और दो बच्चे नीला और जावेद थे.जिंदिगी हंसी ख़ुशी चल रही थी,पैसे की कोई कमी न थी.दोस्त रिश्तेदारों का ताँता लगा रहता था,लोग शादी ब्याह और दुसरे ज़रूरी मसलों में अब्दुल भाई से मशवरा करते.घर में भी दोस्तों-रिश्तेदारों की भीड़ होती दावतें होती.समय परिवर्तित हुआ अब्दुल भाई के व्ययसाय को किसी की नज़र लग गयी..दूकान बंद हो गयी..जमा पूँजी ख़तम होने लगी,खाने तक के लिए मुश्किलें पैदा हो गयीं,जो लोग पहले दावतें उड़ाते अब वह हाल तक न पूछते,जो लोग दूकान से सामान उधर ले जाते थे अब वह इनकी तरफ देखना भी पसंद न करते.
वही अब्दुल भाई आज मिल गए तो कहने लगे भाई,अपना रिश्तेदार दोस्त कोई नहीं होता,सारी दोस्ती-रिश्तेदारी सब पैसे से होती है जो तभी तक रहती है जब तक आपके पास पैसा होता है जब मुसीबत का वक़्त हो उस वक़्त कुछेक ही साथ देतें हैं जो सही मायने में अपने होते हैं.
हमने कहा आपने बिलकुल सही फ़रमाया अब्दुल भाई,आज के युग में समाज कुछ इस तरह से बन गया है की हर आदमी स्वार्थी है,वह उसी से मिलता है जिसके पास दौलत हो या जिससे उसका कुछ मतलब हो.जिससे उसका स्वार्थ न हो उससे वह सलाम दुआ भी नहीं करना चाहता.सिर्फ रिश्तों के मामले में ही नहीं इंसान अपने आपमें संवेदन हीन हो चुका है दूसरों के ग़म को महसूस नहीं करता .दूसरों की खुशियों से ख़ुशी नहीं जलन महसूस करता है. नुक्कड़ पे गुंडों बदमाशो की गुंडागर्दी से कोई फर्क नहीं पड़ता आज के इंसान को.दिल्ली में भीडभाड वाली जगहों पर रोज़ हत्याएं होती हैं, बलात्कार होते हैं गवाही के लिए एक आदमी भी नहीं मिलता .आज के इंसान को अगर मतलब है तो सिर्फ दौलत से,शोहरत से, अगर कुछ गलत उसके साथ हो तो गलत है,दूसरों के साथ हो तो इस तरह की बातें होती रहती हैं|
अब्दुल भाई जैसे बहुत सारे लोग हैं जिनके दोस्त-रिश्तेदार अच्छे वक़्त मे तो साथ रहते है,जब मुसीबत आती है तो छोड़ देते हैं.
यहां समाज के लिये,अपने रिश्तेदारों-दोस्तों के लिये हमारी ज़िम्मेदरी है कि हम उनके अच्छे बुरे हर वक़्त मे साथ दें,लोगों को मान-सम्मान देने का पैमाना उनकी दौलत नहीं उनका व्यवहार और किरदार हो.
—>पात्रों के नाम कालपनिक हैं
Read Comments